why did burma separated from india in hindi ? : तारीख थी 1 अप्रैल 1937 भारत में जब लोगों ने अखबार पढ़ा तो वह गम और गुस्से से भर गए असल में अप्रैल 1937 में अंग्रेजों के द्वारा भारत में एक नया संविधान लाया गया देश में इस संविधान का विरोध शुरू हो गया लेकिन इस विरोध के बीच में नए संविधान से भारत का एक हिस्सा बहुत खुश था इतना खुश था कि वहां पर 1 अप्रैल के दिन छुट्टी कर दी गई जश्न मनाए गए.
यह हिस्सा कोई और नहीं बल्कि म्यानमार था संविधान में कहा गया था कि म्यानमार को ब्रिटेन आजाद कर देगा जी हां साल 1937 तक बर्मा यानी आज का म्यांमार भारत का ही हिस्सा था लेकिन बर्मा भारत का हिस्सा कब बना और यह भारत से अलग क्यों हुआ आज के इस History Article में यही कहानी मैं आपको सुनाने वाला हूं तो वीडियो को एंड तक जरूर देखिएगा बिल्कुल भी स्किप मत कीजिएगा क्योंकि अपना इतिहास नहीं जानोगे तो खुद को कैसे पहचानोगे 1 अप्रैल 1937 के दिन म्यांमार को भारत से अलग कर दिया गया ब्रिटिश सम्राट किंग जॉर्ज सिक्स ने घोषणा की आज वर्मा भारतीय साम्राज्य का हिस्सा नहीं रहा उन्होंने आगे कहा कि अगर यह देश भारत से स्वतंत्र होकर आगे बढ़े तो देश को बेहतर सेवा मिलेगी लेकिन म्यांमार यानी तबका बर्मा भारत का हिस्सा कब और कैसे बना देखिए भारत और म्यांमार के बीच के रिलेशन प्राचीन काल से ही चले आए हैं.
भारत से ही बुद्धिज्म म्यांमार में फैला था दोनों के ही बीच लंबे अरसे तक ट्रेड भी होता था नॉर्थ ईस्ट के स्टेट खास तौर पर मणिपुर वगैरह यहां से जुड़े हुए थे जब भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का कंट्रोल हुआ तब म्यांमार के साथ भी अंग्रेजों का स्ट्रगल शुरू हो गया इसी स्ट्रगल में 1885 में एंगलो बर्मा वार हुई इस वॉर का नतीजा यह निकला कि म्यांमार हार गया और भारत की तरह ही म्यांमार भी अंग्रेजों के कब्जे में आ गया फिर जैसे कोलकात्ता से भारत का शासन देखा जाता था 1911 तक वैसे ही म्यांमार की पॉलिटिक्स को भी कलकाता से ही चलाया जाने लगा इसी बर्मा में 1857 के विद्रोह के नेता मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को कैद करके रखा गया था.
और यही उन्हें बाद में दफनाया भी गया फिर वर्षों बाद बाल गंगाधर तिलक भी वर्मा की मांडले जेल में कैद रहे रंगून और मांडले की जेलों में कई भारतीयों ने अपनी शहादत दी ब्रिटिश काल के दौरान लेकिन म्यांमार के लोगों को यह बात पसंद नहीं थी वह भारत के साथ नहीं रहना चाहते थे इस बात को अंग्रेजों ने भी नोटिस किया और साल 1918 में एक बार इसको लेकर कोशिश भी की गई लेकिन वर्ल्ड वॉर के टाइम पर बर्मा को भारत का हिस्सा बने रहने दिया गया बर्मा के लोकल लोगों को लगता था कि म्यांमार के लोगों के हक का एक बहुत बड़ा हिस्सा बाहरी लोगों को मिल रहा है.
इस फीलिंग के पीछे एक बहुत बड़ी वजह थी सागौन के पेड़ जी हां दरअसल बर्मा में सागौन के बड़े-बड़े पेड़ होते थे और यह इंडस्ट्री यहां बहुत डेवलप थी म्यांमार के लोगों को लगने लगा था कि चाइना और भारत से आने वाले लोग असल में उनकी जमीन पर होने वाले सागौन इंडस्ट्री का फायदा उठा रहे अब साल 1918 में तो इस पर बात नहीं बनी लेकिन 1920 के दशक की शुरुआत से ही बर्मा के अलग होने की मांग उठने लगी थी.
वर्मा के लोगों के बीच में वर्मा के विधायक माउंग पो बाय ने 1922 में बर्मा के भारतीय साम्राज्य से अलग होने के सवाल पर एक कमेटी बनाने की सिफारिश की लेकिन उनकी ये डिमांड जो थी वह विधान परिषद के अध्यक्ष अध्यक्ष ने यह कहकर रिजेक्ट कर दी कि यह बहुत आगे की बात है पहले वर्मा का अपना बेहतर संविधान तो हो लेकिन इसके बाद और भी प्रस्ताव आने शुरू हो गए 1924 में भी यहां की विधानसभा ने ऐसा ही एक प्रस्ताव रखा जिसमें भारत से अलग होने की बात लिखी गई थी.
लेकिन इसमें भारत को लेकर कोई नफरत नहीं थी फिर अगला टर्निंग पॉइंट आता है 1928 में जब भारत में आता है साइमन कमीशन साइमन कमीशन का भारत में तो खूब विरोध हुआ लेकिन इस कमीशन के सामने बर्मा सरकार ने एक सीक्रेट अपील रखी कि भारत से बर्मा को अलग कर दिया जाए.
Myanmar कहा गया कि बर्मा और भारत की जनसंख्या में बहुत बड़ा अंतर है दोनों देशों की ज्योग्राफी भी काफी अलग है जिसमें कांटेक्ट बनाए रख पाना बहुत मुश्किल है एक तर्क ये भी दिया गया कि 1044 ईसवी तक भारत और वर्मा के बीच बहुत कम या नहीं के बराबर का कांटेक्ट था भारतीय एक अलग समुदाय से आते हैं.
उनका एक अलग इतिहास एक अलग धर्म अलग भाषाएं एक अलग सामाजिक व्यवस्था अलग रीति रिवाज और जीवन के प्रति एक अलग नजरिया है इसके साथ ही वर्मा ने यह भी कहा कि उन्हें नहीं लगता कि भारत में अंग्रेजों के जाने के बाद सेना एकजुट भी हो सकती है उनके लिए इमेजिन कर पाना बहुत मुश्किल था कि मद्रासी बंगाली ब्राह्मण सिख पंजाबी और पठानों की एक ही रेजीमेंट और एक ही कंपनी में एक साथ भर्ती हो सकती है.
ये वो दौर था जब बर्मा लेबर और कोयले जैसी चीजों के लिए भारत पर डिपेंडेंट था और भारत चावल धान पेट्रोल और सागौन के लिए बर्मा पर डिपेंडेंट था यानी कि दोनों देश आपस में जुड़े हुए थे इसको ध्यान में रखते हुए बर्मा की तरफ से कहा गया कि भारत से अलग होने पर कुछ समय के लिए अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा इस नुकसान को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कहा कि यह लगाव आपसी सहमति और सद्भावना के साथ होना चाहिए.
इसमें कोई नाराजगी या कड़वाहट नहीं होनी चाहिए अब इस तरह की बातें इस ज्ञापन में लिखी गई थी और इन सब बातों को ध्यान में रखने के बाद साइमन कमीशन ने तुरंत प्रभाव से साल 1930 में बर्मा को भारत से अलग करने का फैसला कर दिया इस पर ब्रिटेन में बैठी अंग्रेज सरकार मान भी गई लेकिन उससे पहले तय किया गया कि एक पहले इलेक्शन करा लेते हैं साल 1932 में इलेक्शन कराए गए इसी बीच सेपरेशन पार्टी के सामने डॉक्टर बा माव की एंटी सेपरेशन लीक खड़ी हो गई जो म्यामार के अलग होने के विरोध में थी सबको लग रहा था कि म्यानमार में सेपरेशन लीग जीत जाएगी लेकिन किसी भी पक्ष को 45 सीटों का बहुमत नहीं मिल पाया इतना ही नहीं सेपरेशन लीग को 29 सीटें ही मिली जबकि एंटी सेपरेशन लीग को 42 सीटें मिली इससे कंक्लूजन यह निकला कि बर्मा के ज्यादातर लोग अलग ही नहीं होना चाहते लेकिन फिर भी अंग्रेजों ने इस विभाजन को मान नता दे दी अंग्रेजों ने यह माना कि बर्मा के लोग अपने मन की बात नहीं जानते इसीलिए साल 1935 में द गवर्नमेंट ऑफ बर्मा एक्ट 1935 लाया गया इसमें कहा गया कि 1 अप्रैल 1937 से बर्मा भारत से अलग हो जाएगा और आगे चलकर यही हुआ वैसे जब बर्मा अलग हुआ तो यहां रहने वाले इंडियंस पर कोई खास असर पड़ा नहीं अगले साल 1938 में सिचुएशन थोड़ी सी बदल गई.
जब यहां पर एंटी इंडियन दंगे शुरू हुए लेकिन इसके बावजूद 1942 तक रंगून जैसे शहर में कई इंडियंस रह रहे थे हालांकि 1942 में जब सेकंड वर्ल्ड वॉर हुआ तो कई इंडियंस को बर्मा छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा लेकिन वर्ल्ड वॉर खत्म होने के बाद वो वापस बर्मा आ गए आजादी के बाद भी बर्मा में अच्छे खासे इंडियंस रहते थे लेकिन फिर जब 1962 में म्यांमार में तख्ता पलट हुआ और एक तानाशाह सरकार आई तो उसने यहां रहने वाले इंडियंस को देश निकाला दे दिया इस तरह से इंडियंस और बर्मा के बीच का कनेक्शन कमजोर होकर बिखर गया तो दोस्तों यह था इतिहास भारत से बर्मा के अलग होने का आपको यह वीडियो कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा वीडियो को लाइक और शेयर करना ना भूले और ऐसी इंटरेस्टिंग कहानियों के लिए हिस्ट्री कनेक्ट को सब्सक्राइब जरूर करें धन्यवाद
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